गोवर्धन महाराज और गोवर्धन पर्व का परिचय
गोवर्धन महाराज, जिन्हें गिरिराज महाराज के नाम से भी जाना जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप के रूप में पूजे जाते हैं। यह पर्वत ब्रज भूमि (उत्तर प्रदेश) के मथुरा और वृंदावन के पास स्थित है और इसका महत्व सिर्फ भक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी का भी प्रतीक है।
गोवर्धन पर्व की पौराणिक पृष्ठभूमि
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, एक समय इंद्र देव के अहंकार के कारण ब्रजवासियों पर लगातार मूसलाधार बारिश होने लगी। भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को बचाने के लिए अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को सात दिन और सात रात तक उठाकर रखा। इस घटना ने इंद्र देव का घमंड तोड़ा और यह संदेश दिया कि हमें प्रकृति और धरती की पूजा करनी चाहिए, न कि केवल देवताओं को खुश करने के लिए अंधविश्वास का पालन।
कब मनाया जाता है गोवर्धन पर्व
गोवर्धन पूजा, दीपावली के अगले दिन मनाई जाती है। यह दिन अन्नकूट महोत्सव के रूप में भी प्रसिद्ध है। इस दिन लोग घर-घर में और मंदिरों में अन्न, मिठाई और पकवानों का भव्य भोग लगाते हैं।
गोवर्धन महाराज की आरती के बोल और उनका अर्थ
(गोवर्धन महाराज की आरती के बोल, श्री गोवर्धन महाराज की आरती इन हिंदी, तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ)
गोवर्धन पूजा के समय गाई जाने वाली गोवर्धन महाराज की आरती भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन महाराज की महिमा का गान है। यह आरती भक्तों के प्रेम, कृतज्ञता और भक्ति का सुंदर संगम है।
गोवर्धन महाराज की आरती
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ,
हाथ मोर मुकुट की छाया।
श्याम रंग, सुंदर अंग,
मुरली मनोहर भाया॥
जय जय गोवर्धन महाराज,
जय जय गिरिराज महाराज॥ 1 ॥
गौओं के बीच विराजत,
ग्वाल बाल संग खेलत।
बांसुरी मधुर बजावत,
मन मोहनि छवि फैलत॥
जय जय गोवर्धन महाराज,
जय जय गिरिराज महाराज॥ 2 ॥
गोकुल के सब लोग,
ध्यान धरे तेरे ही रूप।
अन्नकूट भोग लगावत,
सुख संपत्ति कर प्रतिरूप॥
जय जय गोवर्धन महाराज,
जय जय गिरिराज महाराज॥ 3 ॥
दीनन की तू लाज राखत,
दुखियों के तू दुख हरत।
इंद्र के घमंड को तोड़े,
भक्तों का कष्ट हरत॥
जय जय गोवर्धन महाराज,
जय जय गिरिराज महाराज॥ 4 ॥
आरती का भावार्थ
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“तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ” – यह गोवर्धन महाराज को राजा के रूप में सम्मानित करती है।
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“मोर मुकुट की छाया” – यह श्रीकृष्ण के मुकुट में लगे मोर पंख की सुंदरता और दिव्यता को दर्शाता है।
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“श्याम रंग, सुंदर अंग” – कृष्ण का आकर्षक व्यक्तित्व और मोहक रूप।
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“मुरली मनोहर” – भगवान की बांसुरी की मधुर ध्वनि का उल्लेख।
तथ्य सारणी
विषय | विवरण |
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मुख्य देवता | भगवान श्रीकृष्ण / गोवर्धन महाराज |
मुख्य पंक्ति | तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ |
अवसर | गोवर्धन पूजा, अन्नकूट महोत्सव |
विशेषता | भक्ति और प्रेम का प्रतीक |
समय | दीपावली के अगले दिन |
गोवर्धन पूजन और आरती का महत्व
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गोवर्धन पूजा का महत्व श्रीमद्भागवत पुराण और गर्ग संहिता दोनों में विस्तार से वर्णित है।
धार्मिक महत्व
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गोवर्धन महाराज को अन्न, जल और प्रकृति का रक्षक माना जाता है।
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पूजा करने से घर में अन्न और धन की कमी नहीं होती।
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जीवन में आत्मविश्वास और शक्ति का संचार होता है।
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भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से इंद्र दोष का नाश होता है।
आध्यात्मिक महत्व
गोवर्धन पूजा हमें सिखाती है कि असली भक्ति प्रकृति और जीवों की सेवा में है। यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपनी धरती और पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए।
गोवर्धन पूजा 2024: मुहूर्त और विधि
तिथि | मुहूर्त | समय |
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2 नवम्बर 2024 | गोवर्धन पूजा | सुबह 6:15 से 8:45 बजे तक |
विधि
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प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
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घर के आंगन या मंदिर में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का स्वरूप बनाएं।
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इसे फूलों, पत्तियों, अनाज और मिठाइयों से सजाएं।
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दीप जलाएं और आरती गाएं।
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अन्नकूट का भोग लगाकर सभी को प्रसाद वितरित करें।
गोवर्धन महाराज की पूजा विधि और मंत्र
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प्रातः स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
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घर में गोवर्धन का स्वरूप बनाएं या मंदिर में जाएं।
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“ॐ गिरिराजाय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
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विभिन्न प्रकार के अन्न, मिठाइयां और पकवान अर्पित करें।
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परिवार सहित आरती करें और भोग ग्रहण करें।
अन्नकूट महोत्सव और गोवर्धन पर्व की कथा
अन्नकूट महोत्सव गोवर्धन पूजा के दिन मनाया जाता है। इसमें विभिन्न प्रकार के पकवान और मिठाइयों का विशाल भोग लगाया जाता है।
पौराणिक कथा
जब भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि ब्रजवासी हर साल इंद्र देव को खुश करने के लिए यज्ञ करते हैं, तो उन्होंने उन्हें समझाया कि असली रक्षक गोवर्धन पर्वत और गौ माता हैं, क्योंकि वही हमें अन्न, जल और जीवन देते हैं।
ब्रजवासियों ने इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा की। इससे क्रोधित होकर इंद्र ने मूसलाधार वर्षा कर दी। तब श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सभी को सुरक्षित रखा।
निष्कर्ष:
गोवर्धन पूजा और आरती का महत्व धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सभी दृष्टिकोण से अद्वितीय है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति की पूजा ही असली पूजा है, और एकजुट होकर कठिनाइयों का सामना करना ही सच्चा धर्म है।